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सोनी गुप्ता

Romance

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सोनी गुप्ता

Romance

रिश्ता तुमसे

रिश्ता तुमसे

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तुमको रही हमेशा शिकायत कोई द्वार नहीं था आया

जब पहुंचा द्वार तुम्हारे मन के द्वार को बंद ही पाया

फिर भी मन के द्वार से खटखटाया जब तुम्हारा द्वार

वहाँ से भी तुम्हारा कोई संदेश भी मुझे न मिल पाया II


मन में कितने ही सवालों को लेकर हमेशा उलझता रहा

तुमने दिया जो भी इसका जवाब उन्हें मैं समझता रहा

अक्सर आंखों को अपनी बंद करके तुझे देख लेता था

तुम्हारी यादों के भ्रम में मन ही मन को छलता रहा II


काश समय रहते ही मैं अपने भावों को तुमसे कह पाता

काश हाल- ए- दिल अपना सुना तुमको मैं सुना पाता

तुम्हारी वो झुकी-झुकी सी पलके और उदास चेहरे पर

दुनिया भर की सारी खुशियाँ तुम्हारे लिए ढूंढकर लाता II


तुम्हारी राहों में अपनी पलके बिछाकर इन्तजार में खड़े

काश वो दिन आता तुम्हें अपना हमसफ़र बना लेता

हमारे रिश्तों का ताना- बाना कच्चे धागों से बुन रहा था

अच्छे और बुरे हर मोड़ का स्वाद वो चख रहा था

काश रूठकर मनाकर ही ये नेह का रिश्ता जोड़ लेता II



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