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Devendraa Kumar mishra

Romance

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Devendraa Kumar mishra

Romance

प्यार

प्यार

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जब दो लोग अचानक या धीरे-धीरे एक दूसरे के निकट आते हैं 

और फिर बिना इजाजत आँखों के रस्ते दिल में उतर जाते हैं 

और बिना धर्म, समाज, जाति अपनों की परवाह किए बिना एक अटूट बंधन में बंध जाते हैं 

और जब लाख तोड़ने पर भी नहीं टूटते हैं

तो किसी तालिबानी मानसिकता के शिकार हो जाते हैं 

किन्तु तब तक वे दो से एक, अर्द्धनारीश्वर हो जाते हैं 

और मीरा, राधा जैसे नामों से जुड़ जाते हैं 

हाँ कह सकते हैं कि प्यार अंधा होता है 

यदि सच में होता है तो गूँगा, बहरा भी होता है 

प्यार है, अलग कर दो, तोड़ दो 

लेकिन दिल की लगी, लगी रहती है मौत तक 

प्यार है तो है क्या दिल के मारो से जोर आजमाइश करना 

उनकी वे जाने, दुनियां ही अलग है जिनकी, वे किस की माने 

छोड दो दिल के मारों को 

अलग करके तड़प देने से अच्छा है कि एक होकर जिए.

जी लेने दो बेचारों को 

प्यार ही तो है कोई गुनाह तो नहीं 

दिल ही तो है कोई दिमाग नहीं 

दिमाग होता तो पड़ते ही क्यों इस चक्कर में 

और तुम जितना जोर लगाओगे 

प्यार को उतना ही मजबूत पाओगे. 



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