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Ganesh Chandra kestwal

Romance

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Ganesh Chandra kestwal

Romance

सजाकर ख्वाब

सजाकर ख्वाब

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मुझे बेचैन करने को तुम्ही तो दिल चुराते हो।

अदाओं से तुम्ही अपनी मुझे क्योंकर लुभाते हो॥


कभी लगता यहीं पर हो कभी फिर दूर हो लगते।

सजाकर ख्वाब आँखों में कभी मुझको बुलाते हो॥


बताओ क्या खता की है मिले जब भी जमाने में।

दिला कर याद फिर अपनी मुझे क्यों तुम रुलाते हो॥


बहारें जिंदगी की क्यों तुम्हें अच्छी नहीं लगतीं। 

जगा कर आस दिल में क्यों उसे खुद ही बुझाते हो॥


जमाने को सुहाता कब रहे हम मौज मस्ती में।

दिखाए ख्वाब हैं तुमने कहो अब क्यों भुलाते हो॥


बनाया आशियाना खूबसूरत है खुशी से क्यों।

लुटाते हो जमाने में कहो फिर क्यों कमाते हो॥


रहेगी जिंदगानी गर रहो तुम साथ में अपने।

'प्रखर' है नूर जो तेरा उसे खुद क्यों मिटाते हो॥


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