मोहर दोस्ती की
मोहर दोस्ती की
मोहर लगाकर पन्नों
पर कविताओं की
कलम दोस्ती निभाती रही
हम हकीकत से ख्वाबों में
खोकर लिखते रहे तुम्हे
मगर क्या हुआ
तुम कही और
हम कही और
एक दिन पन्नों की गठरी
खोल कोई और पढ़ता गया
कहता गया कितनी हसीन
मोहबत की होगी लिखने वाले ने
मगर समझ न पायी तुम
फिर क्या था
तुम कही और
हम कही और
और ये पन्ने
ले गया कोई और।