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yashoda nishad

Romance

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yashoda nishad

Romance

तुम हो...!

तुम हो...!

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मेरे लबों की,हँसी तुम हो।

मेरी हर साँस के महकने की,वजह तुम हो…

मैं जो जी रही हूँ,मेरे जीने की वजह तुम हो…॥


मेरी हर नज़र में,बसे तुम हो,

मेरी हर कलम पर,लिखे तुम हो।

मेरे दिल के,धड़कने की वजह तुम हो…

मैं जो जी रही हूँ,मेरे जीने की वजह तुम हो…॥


मैं जो लिखूं तो,ग़ज़ल तुम हो,

मैं जो सोचूं तो, ख्वाब तुम हो।

तुझे पा के इस बागिया में महकने की,वजह तुम हो…

मैं जो जी रही हूँ,मेरे जीने की वजह तुम हो…॥


मेरी हर इबादत भी,तुम हो,

मेरी दिल्लगी,दीवानगी भी तुम हो।

मेरी पहली और आखिरी चाहत की,वजह तुम हो…

मैं जो जी रही हूँ,मेरे जीने की वजह तुम हो…॥


मुश्किल भी तुम हो,हल भी तुम हो,

मेरे सीने की हलचल भी,तुम हो।

खामोशियों में भी गुनगुनाने की वजह तुम हो…

मैं जो जी रही हूँ,मेरे जीने की वजह तुम हो…॥


महकती हवा की खुशबू में,तुम हो,

मेरी ज़िंदगी के महकने की,हकीकत तुम हो।

तुझे चाहकर बहकने की,वजह तुम हो…

मैं जो जी रही हूँ,मेरे जीने की वजह तुम हो…॥


मेरी तन्हाई भी तुम हो,

मेरी रुसवाई भी तुम हो।

मेरे रात-दिन मुस्कुराने की,वजह तुम हो…

मैं जो जी रही हूँ,मेरे जीने की वजह तुम हो…॥


सच भी तुम हो,झूठ भी तुम हो,

पास भी तुम हो,दूर भी तुम हो।

मेरे खड़े रहने की वजह तुम हो…

मैं जो जी रही हूँ,मेरे जीने की वजह तुम हो…॥


मैं ज़िंदा हूँ,जब मेरे पास तुम हो,

मैं मुकम्मल हूँ,जब साथ तुम हो।

मैं तुम में हूँ,तुममें होने की वजह तुम हो…

अब सब तुम हो…तुम ही तुम हो…।

मैं जो जी रही हूँ,मेरे जीने की वजह तुम


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