वो खत
वो खत
काश! वो खत पढ़ लिया होता मैंने
लिख दिया होता तुम्हें जवाब,
अब तो बहुत देर हो चुकी है
तुम अब तो लिखी जाती हो दूसरों के खत में,
दूसरों की स्याही से, किसी दूसरों के जज़्बात के साथ
और मैं तलाश कर रहा हूँ तुम्हारी ही जैसी कोई
ताकि मैं ज़िंदा रहूँ और लिखता रहूँ ताउम्र कोई कविता,
कोई गज़ल, कोई कहानी या फिर लिखूं
अंदर दबे जज़्बात को और
बन जाऊं पुरातत्व विभाग।