गाँव से शहर
गाँव से शहर
मैं जब चला था गांव से शहर
देखा था नाला से ड्रेन होता हुआ
किसान को देखा था
आम के पेड़ पर झूला हुआ
जिन हाथों में रोटी के टुकड़े
और किताब के साथ-साथ
अक्षर के ज्ञान होने थे
उन हाथों में थे खंजर या
कोई अस्त्र देखा था
एक विधवा को
जिसने लगाई थी कभी गुहार
सरकार से अपने खेत बचाने की
मगर सबसे ज्यादा दर्द तो तब हुआ
जब रचयिता रचने लगते है उसके जीवन पर
आधारित कोई कहानी या कविता
और लूट ले जाते है वाह-वाही, धन और सोहरत।
