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kalpana gaikwad

Romance

4  

kalpana gaikwad

Romance

शिकवा कैसा???

शिकवा कैसा???

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बहुत कुछ तुमसे सुनना चाहती थी

जबसे हाथ तूने थामा था

वक्त ही कहाँ था तुम्हारे पास

ना हमारे पास

अपना अपना कर्तव्य निभा रहे थे

ना शिकवा तुम्हें रहा कभी

ना हमें कभी शिकायत

बखूबी तुम निभा रहे थे

अपना हर कर्तव्य

मैं भी तो कर्म से अपने सिंचित कर

रही थी अपने पेड़ की शाखाओं को

अपनी उम्मीद, इच्छाओं को दबा दबा कर

बस जीये जा रहे थे

यूँ इस तरह अपनी अपनी उम्र

को घटा रहे थे

ना तुमने परवाह करी अपने

शौक और जुनून की

मैंने भी परे रख दी अपने शौक

और खुशियों की पोटली

तुम्हारी मजबूरियों के गवाह

हम बने 

और हमारी सच्चाई के तुम

तुम्हारा हाथ पकड़कर हम 

भी आँख मूंदकर बस चल दिये

तुम्हारे पीछे पीछे

तेरी हर एक अदा पर

बस हम फिदा रहते थे

तेरा जुनून तेरी सच्चाई तेरा शौक

मेरे ही दिल के रास्ते होकर

गुजरता था

तभी तो तेरी कलम

मेरे दिल की स्याही में डुबोकर

तू मेरा हाथ पकड़कर

बस लिखता था जज़्बात मेरे

तेरी हर लिखी कविता मेरी

आँखों के सामने आकर ही

रफ्तार पकड़ती थी

जब मेरी वाह निकलती थी

शौक, समझ, जुनून तेरे

मेरे रहे एक जैसे

मैं तुझसे रूठ जाऊँ

तुझे मनाना आता था

तेरी चोर नजरे जब टकराती थी

मेरी नजरों से मैं भी नजर

बचा कर मुंह घुमाकर बड़ी

मुश्किल से खुद पर काबू पाकर

घिरे से मुस्कुरा देती थी

गुस्सा काफूर हो जाता था 

जब तू बाँहों में आता था

कभी जुबां ने साथ ना दिया

कभी शर्म ने रोका

कह देती तो अच्छा होता

कि कितना हैं प्यार तुमसे

ओ मेरे हम सफर

तेरे बिना जिंदा तो हैं लेकिन

पत्थर बन गये हैं

गर तू सामने आये तो 

ये पत्थर में जान आये

जानते हैं तू रूबरू

कभी ना आये लेकिन

ख्वाब में ही आ जा कभी

जो बातें अनकही रही

कुछ तुम कह दो

कुछ मैं कह दूँ

जी भर जी लें

हम उस पल को

जो हकीकत में हो ना सका

वो ख्वाबों में हो जाये जरा

ऐ हमसफर मेरे एक बार

आ जा जरा

फिर जाने ना दूँगी

आँखों में कैद करूँगी

पलकों पर लगा दूँगी ताला

और बन जाऊँगी

तेरी गांधारी

सिर्फ तेरी खातिर

ताउम्र!!!!!!!



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