हारे हुए सच
हारे हुए सच
कई दफा
सच हारने लगता हैं
सच, सिर्फ सच हैं, तो पिंडलियाँ
क्यों कांपती है,
झूठ की तरह सफेद पड़ जाता हैं
उसका चेहरा!!!!
संभवतः
डरकर अपने चेहरे पर कृत्रिमता
का मास्क लगाने से परहेज नहीं रख पाया
या फिर
झूठ ने तपस्वियों सा तप कर
इतना ताप संचित कर लिया होगा
कि वह
सच को झुलसा दे!!!!
जिंदगी के पिच पर
नियमों को तोड़ती हुई गेंदें
क्लीन बोल्ड ना करे, भले ही
छकाने चौंकाने का
बढ़िया जरिया होती हैं!!!!
बशर्ते
विश्वास से डटे रहे पिच पर
पीछे रहे लंम्बी कतार
सत्य की
आपके ना होने पर वह खेलता रहे
विश्वसनीय बल्ले बाज की मानिंद
फिर झूठ की बाउंसर को
हल्के से पुश ही तो करना होता हैं गेंद हो जाती हैं
सीमा रेखा के बाहर!!!!
