यादें
यादें
शरीर कृषकाय हो चुका लेकिन
दिल आज भी एक मासूम बच्चा हैं!!
कुछ सुलझे अनसुलझे रहस्य
खट्टी मीठी यादों की पोटली
गिरह खोल दी आज मैंने उनकी!!
किन्तु मेरे आगोश की कैद से
यादें छूट रही हैं
एक प्यारे नटखट बच्चे के समान!!
जो छुप छुप ताका झाँकी करता हैं
मेरा दिल स्तब्ध अंजान की भाँति
सुध बुध खोकर निहार रहा हैं!!
बस अब यादों को कैद करना होगा
लेकिन फिर भी मुश्किल
खत्म कहाँ होती हैं!!
यादों पर किसका जोर चला है!!
यादें कहाँ कोई अनुशासन का
पालन करती हैं
ये वक्त की तरह मुठ्ठी
में कैद रेत की मानिंद बस फिसलती ही जाती है!!
यादें तो बस यादें हैं
जितनी शिद्दत से इसके समुद्र में गोते
लगायेंगें,उतनी ही यादों के भंवरजाल
में डूबते चले जायेंगे
यादें तो बस यादें हैं
यादें कहाँ उम्र बढ़ाती हैं!!
यादें तो हमको बचपन से लेकर
जीवन के हर पहलू के दर्शन
करवाती हैं!!
यादें तो बस यादें हैं
क्योंकि बचपन तो अभी ढला ही नहीं!!
