मजबूर बाप
मजबूर बाप
एक मजबूर बाप ने
अपने दिल के टुकड़े को सौंप दिया
किसी अपने को अमानत के तौर पर
अमानत को समझने लगा
वो खुद के घर का चिराग
अमानत में खयानत वो करने लगा
लालच भी उसका सिर चढ़कर
बोलने लगा!!!!
दस्तूर यही
पेड़ से शाखा जुदा हो जाये
शाखा का वजूद पेड़ से हैं जुड़ा
चाहे काटो कितनी बार
बिना पेड़ के जिंदा तो रह ले
लेकिन साँस नहीं ले
पाती हैं!!!!!
ऐ लालची लकडहारे
कितनी बार जुदा करोगे
कोमल शाखा को तुम काट काट
लेकिन जिस दिन शाखा और
पेड़ का मिलन होगा
समझों उस दिन शाखा
का , पुनर्जीवन होगा!!!!!!
दोनों का अटूट गठबंधन होगा
लकडहारे तेरी चालाकी से भरे
हर वार निष्फल होंगें
देखेगा तू भी शाखा फिर
कोमल कोमल पत्तों के संग फूट पड़ी
खिलखिला और मुस्करा रही हैं अब
क्योंकि शाखा को नवजीवन देने
वाला मिल गया
उसका ऑक्सीजन!!!!!!!
