फेंके गए तेजपत्ते का शोकगीत
फेंके गए तेजपत्ते का शोकगीत
आपके घर मकान तालाब
हस्पताल मॉल
स्कूल कॉलेज बनाये
आपके पार्क सजाये स्कूटर चलाये
ई रिक्शा चलाये बच्चे घुमाये
खाना भी आपका पकाया
आपकी कारें चलाई
क्या पाया हमने?
आपने हमे तेजपत्ता समझ के डाला अपने
जीवन की तरकारी में, खुशबू के लिए..
खुशबू निचोड़ के फिर फेंक दिया निकाल के"
वाह...?
"जाओ गेट लॉस्ट, जैसे भी जाना है
पैदल या साइकल से अपने गाँव....
शक्ल मत दिखाना....
तुम तो तेजपत्ते थे अब और क्या दोगे हमें?
अब तुम कचरे से ज्यादा कुछ नही
सड़ो अपने गाँव में !
यह शहर तुम्हारा नहीं था कभी भी ..
अब तो धनिये का काम है
जो अपनी सुवास बिखेरेगा हमारे जीवन के
पकवान के ऊपर विराज कर.. "
धनिये भी बनने की चाहत वाले बहुत है यहाँ पर
राजनेता अफसर जो लाइन लगा के बैठे है
श्रेय लेने को
हमारे कामों का ...
धनिया तो आप हमें बनाने से रहे
तेजपत्ते की तरह रखते तो भी
किसी कूड़े के ढेर में न फेंकते न..
कम से कम किसी खेत में ही फेंक देते हमें
जहाँ हमारी अस्थियों की खाद ही बन जाती
जो आपकी गेंहू चावल की रोटी की तरह
आपके स्वाद को बढ़ा देती,
आपने तो हमें कूड़ा ही समझा !
कूड़े के ढेर की तरह
आपने निकाला अपने महानगर से !
चले जाएंगे साहेब!
फिर न कहना कि
बताया नहीं कि
हमें तेज पत्ते की तरह क्यों रखा?
हम तो धनिया बनने की भी नहीं थी चाहत
हमें दो वक्त का खाना और जाने भर का टिकट
ही दिया होता साहेब
तो हम शिकायत न करते आपसे,
दोबारा आने को न कहना साहेब
लाख कहोगे तो भी न आयेंगे
तेजपत्ते या चुसी हुई गुठली बनने को
सड़ेंगे मरेंगे अपने गाँव में
जहाँ आपकी आवाज़ भी नहीं आयेगी
इस सदी में