संभोग का खेल
संभोग का खेल
छूट गए पीछे बचपन के खेल ,अब तो गर कुछ याद है ,तो वो है जवानी का एक खेल ,संभोग का खेल.
अरे ये क्या कह दिया ?क्या तुम्हे ज़रा भी शर्म नहीं आई ?गर पढ़ेगा कोई इसे तुम्हारे बाद कभी ,तो होगी तुम्हारी कितनी रुसवाई ?
तुम एक औरत हो ....ज़रा सोच कर लिखा करो ,ये संभोग - शंभोग की बातें ,मर्दों को ही करने दिया करो.
वाह री स्त्री ?अब तेरी ये औकात ,और तू चली है करने ,मर्दों के साथ कदम मिलाने की बात.
हाँ .... बिलकुल मैं कदम मिलाऊँगी ,और ये खेल भी सबको बताऊँगी ,ज़वानी का ये खेल निराला ....इसे जो खेले वो किस्मतवाला.
ये हमने - तुमने नहीं बनाया ,ये दो शारीरिक आत्मायों की भूख है ,इस खेल में कोई हार - जीत नहीं ,ये सृष्टी रचने का एक प्रारूप है.
इस खेल की तासीर गरम ,ये बंद कमरे में खेला जाता है ,इसमे दो से ज्यादा आत्मायें गर शामिल हों ,तो खेलने में और मज़ा फिर आता है.
पर हर देश और संस्कृति की ,होती है अलग परिभाषा ,इसलिये इसे ऐसे खेलो ,जो रंग तुम्हारे देश को भाता.
मगर आज बहुत से लोग ...इस खेल को गंदा कर रहे ,कभी जबरदस्ती इसे खेल ,मासूमों को नंगा कर रहे.
इसलिये इस खेल को छिपाना नहीं ,सबको शोर मचाकर बताना है ,जैसे बचपन के खेल की कुछ सीमाऐं थीं ,वैसे संभोग के खेल पर भी अंकुश लगाना है..

