ऐ धरा, तू इतनी अशांत क्यों है, हाँ मानती हूँ कितना कष्ट है तेरे कण कण में. ऐ धरा, तू इतनी अशांत क्यों है, हाँ मानती हूँ कितना कष्ट है तेरे कण कण में.
मेरे जीवन की वो किताब हो तुम, जिसको रोजाना मैं पढ़ती हूँ। मेरे जीवन की वो किताब हो तुम, जिसको रोजाना मैं पढ़ती हूँ।
घिर आए सुधियों के बादल शीतल शीतल चली हवाएं। घिर आए सुधियों के बादल शीतल शीतल चली हवाएं।
पीते नहीं साकी शराब साकी को ही पी जाता है मदिरालय का आँगन। पीते नहीं साकी शराब साकी को ही पी जाता है मदिरालय का आँगन।
नफरतें भी जलाना तुम होली अबकी जब जलाना तुम। नफरतें भी जलाना तुम होली अबकी जब जलाना तुम।
बहुत दिनों से मैं कविता लिखने का प्रयास कर रही थी.... बहुत दिनों से मैं कविता लिखने का प्रयास कर रही थी....