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Kunda Shamkuwar

Others

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Kunda Shamkuwar

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ना लिख पाने वाली कविता

ना लिख पाने वाली कविता

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बहुत दिनों से मैं कविता लिखने का प्रयास कर रही थी....

कभी एक टुकड़ा आसमाँ....

तो कभी मेरे हिस्से की धूप पर....

लेकिन न जानें क्यों कविता बन नही पा रही थी....

कवी कभी शांत रह सकता है भला?

इसी तर्ज पर फिर लिखना शुरू किया

कभी औरत की आज़ादी की बात पर..

कभी आज़ाद ख़याल औरत पर....

लेकिन यह कविता भी न बन सकी....

मैंने पक्का किया कि कविता तो अब लिखनी ही है

न धूप न आसमाँ और न औरतों पर....

बल्कि बाज़ार और बाज़ारवाद पर लिखना शुरू किया...

लेकिन यह कविता भी बन न सकी....

मेरा कवि मन कविता न लिख पाने से परेशान होने लगा....

कविता के विषय की चाह में मैं इधर उधर भटकने लगी...

कभी अख़बार में तो कभी टीवी में....

लेकिन वहाँ बस अपराध और राजनीति की खबरें थी....

मन की वितृष्णा मे कविता न बन सकी

लेकिन मैने आज ठान लिया है की कविता ज़रूर लिखूँगी...

कलम और विचारों की ताकत को सलाम कर मैंने लिखना शुरू किया...

लेकिन आज के पूंजीवाद और सत्ता के खेल देख मैं कविता न लिख पायी..



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