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AVINASH KUMAR

Abstract Romance

4  

AVINASH KUMAR

Abstract Romance

प्रेम रहस्य

प्रेम रहस्य

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 वो है निराला, ना मिटने वाला

बहती नदी सी निर्मल धारा।

चमन में खिला वो, कली का सितारा

वही प्रेम है जो रहे रूह वाला।।


रहस्य प्रेम का रह पाता नहीं है

 सच्चे प्रेम में प्रेमी प्रेमिका को कह पाता है


सुहाने सफ़र की रुहानी डगर है

जहाँ ये जहाँ भी यूँ बेखबर है।

समन्दर लहर से अचल जो किनारा

वही प्रेम है जो रहे रूह वाला।।


जिस्मों से बढ़कर साँसों में रहकर

सौरभ पवन से हुआ ना किनारा।

भले जिस्म दो हों अकेला अधूरा

वही प्रेम है जो रहे रूह वाला।।


उषा की किरन वो सांझ का तारा

सदा टिमटिमाती वो तारों की माला।

आहट नहीं जब निगाहों में सारा

वही प्रेम है जो रहे रूह वाला।।


सागर से गहरा शिखर से भी पारा

उस चाँद सूरज से ज्यादा ही न्यारा।

महकती हवा का सदा जो बहारा

वही प्रेम है जो रहे रूह वाला।।


प्रेम कली की यही रूह माला

महकती सदा जो रुके न कबारा

जहां से शुरु हो रमा राम धारा

वही प्रेम है जो रहे रूह वाला।


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