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Ranjana Jaiswal

Romance

4  

Ranjana Jaiswal

Romance

एक प्रेम -कथा

एक प्रेम -कथा

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325

घनानंद का फोन आया था

वर्षों बाद सुजान के पास

घनानंद फूट फूटकर रो रहे थे

आँसू सुजान की आंखों में भी थे हालांकि उसके आँसू नहीं देख पा रहे थे घनानंद

उसकी आवाज़ का स्पंदन कंपन थरथराहट और बिखराहट

वे सुन पा रहे रहे थे

आवाज़ का भी एक व्यक्तित्व होता है

जिससे समझा जा सकता किसी के मन को

घनानंद भी समझ पा रहे थे सुजान को

वे दुहरा रहे थे अपने प्रेम की एक- एक बात

एक- एक परिदृश्य आज भी उतना ही टटका,

रोशन और आवेगपूर्ण था

जबकि उसे गुजरे हो गयीं थीं सदियां

सच भी है प्रेम न मरता है कभी न पड़ता है पुराना

घनानंद बता रहे थे सुजान को जब पहली बार उन्होंने देखा था उसे

कैसे उनके जीवन के रेगिस्तान में घिर आए थे बादल

सुजान के काले केशों की तरह

कैसे महकने लगे थे उनके सुबहोशाम

गुलाब की बगिया की तरह

कैसे रूप -रस -गंध की वर्षा में भीगता रहता था

त -दिनउनका तन मन

ये बताते हुए उनके स्वर के चहक थी ,महक थी,

खनखनाहट थी और चाहत थी

जरूर चमक रहा होगा उनका चेहरा इस समय सुनहरी आभा से

प्रेम में हर आदमी के साथ ऐसा ही होता है शायद

घनानंद जब बता रहे थे कि आखिरी बार जब

उसकी 'ना' सुनी थी किस तरह बिखर गए थे टूटकर

सुजान को सुनाई देने लगी उनकी टूटन

घनानंद सुजान से बिछड़कर गृहस्थ बन गए थे

कवि घनानंद की तरह बैरागी नहीं बन पाए थे

गृहस्थ बनना बैरागी बनने से ज्यादा चुनौतीपूर्ण होता है

मन में किसी और को धारे किसी और के साथ जीवन बिताना इतना आसान नहीं होता

हर दो में से एक स्त्री जानती है यह बात

क्योंकि स्त्री जीवन में अक्सर होता है ऐसा -ही

पुरूष भी जानता होगा यह सच जैसे घनानंद जानते हैं

घनानंद हँस रहे थे घनानंद रो रहे थे

अपनी एक एक अनुभूति को सुजान तक संप्रेषित कर रहे थे

सुजान समझ रही थी कि घनानंद का हर शब्द

ब्रह्म की तरह सत्य है

वह कर भी क्या सकती थी सिवाय सुनने के

घनानंद शिकायत कर रहे थे कि वह क्यों नहीं चल दी थी सबकुछ छोड़कर उनके साथ

जब निर्वासित किए गए थे वे उसी के कारण

इतना भी भरोसा क्यों नहीं किया था उन पर कि वे महफ़ूज रखेंगे उसे अपने हृदय की तरह।

कैसे बताती सुजान कि आसान नहीं होता स्त्री के लिए

सब कुछ छोड़कर चल देना एक अनिश्चित भविष्य के साथ

घनानंद तब प्रेम विवश थे और वह दुनियादार

आज उनके सामने है दुनियादारी की दीवार

क्या घनानंद अब चल सकते हैं सबकुछ छोड़कर सुजान के साथ

सुजान पूछ सकती थी घनानंद से यह बात पर वह पहले की ही तरह चुप थी

स्त्रियाँ अक्सर चुप ही रह जाती हैं प्रेम में।


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