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Ranjana Jaiswal

Others

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Ranjana Jaiswal

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स्त्री और चना

स्त्री और चना

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एक बार चना पहुँचा

विधाता को सुनाने अपनी व्यथा

श्रीमान, आप भी सुनें वह कथा

भगवन! आप ही करें न्याय

मेरे साथ होता है धरती पर

बहुत अन्याय

जब मुझे बोने के लिए

ले जाता है किसान

लेता है हमको फाँक रास्ते में ही

पहुँचता है खेत पर चबाते हुए

अंकुरित होते ही मेरे

पैदा हो जाते हैं अनगिनत प्रेमी

करते भी नहीं इंतजार उगती हुई नन्ही

मुलायम पत्तियों के जरा हरा होने तक

गड़ाने लगते हैं अपने बेसब्र नाखून नुकीले

मेरी अनउगी गुलाबी पत्तियों में आते ही

कुछ अमलोन खटास

खोंटने लगते हैं मुझे

चबा डालते हैं नमक के साथ

थोड़ा बड़ा होता हूँ तो

मुँह मारते हैं पशु और

आदमी भी काटता है बस –

जड़ों को जरा-सा छोड़कर

फनगने के लिए

यहाँ प्राकृतिक आपदाओं

पानी और खाद आदि की बात का

वैसे भी कोई मतलब नहीं

अन्नों में एक अकेला ऐसा अन्न मैं

जो उगता हूँ ढेलहर खेत में भी

कम से कम पानी में

खाद के बिना भी

किसान की उपेक्षा का शिकार

अन्न गरीब का फिर भी होता हूँ जवान

भर आते हैं दाने हरे मुलायम जब

कैसे हैं आदम के वंशज कि

चबाने लगते हैं नाजुक दानों को भ्रूणावस्था में ही

मेरी जड़ों में आग लगाकर ‘होरह” देते हैं

मेरे हरेपन को

बचा रह जाता हूँ तब भी

प्रौढ़ पके ललौंछ दानों से भरी

छीमियाँ खनखनाती हैं

बजती है जैसे गोंड़िन की पायल

रौंदा जाता हूँ खलिहान में

डंठल और छिलकों से

अलग होते ही शुरू होता है

अत्याचार का एक अलग अध्याय

भिंगोकर, छौंककर

चपटाकर कभी खपरी में

गर्म बालू के साथ भून ही डालते हैं

छिड़कते हैं मेरे जले पर नमक मिर्च

प्रभो! कब तक रहेगा मेरा यह हाल

मैं हूँ बहुत बेहाल”

मुस्कुराते हुए विधाता ने होंठों पर

फिराई जबान और बोले –

‘चने, सच नहीं है कोई सानी

देखो, मेरे मुँह में भी आ गया है पानी’

चने की यह कहानी

सुनी थी मैंने किसी स्त्री की जुबानी

हो सकता है स्त्री और चने में

हो कोई नाता

कह सकती हूँ सिर्फ इतना ही कि

स्त्री चना नहीं है



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