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Ranjana Jaiswal

Others

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Ranjana Jaiswal

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गाँव

गाँव

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क्या सभी गाँव होते हैं 

मेरे गाँव जैसे 

जहाँ बच्चे 

मोजरों के बीच छिपे 

नन्हें हरे फलों को पहली बार देखकर 

उछल पड़ते हैं खुशी से

रोज उन्हें निहारते हैं  

और उनकी धीमी बढ़त पर 

झूँझर खाते हैं 

टमाटर के पौधों पर अचानक 

निकल आते हैं 

रसीले फल  

लतरों के सहारे कहीं भी लटक आते हैं 

नेनुआ सेम सरपुतिया लौकी

दुल्हन की तरह 

सात पर्दों में लजाती है मकई

बसंटी बयार में 

युवा पत्तियों को इठलाते देख 

कड़कड़ाती हैं बूढ़ी पत्तियाँ 

और अधेड़ पत्तियाँ 

मुस्कुराकर छुपा लेती हैं उन्हें

आँचल के नीचे  

हरी मिर्च 

बूढ़ी कहकर चिढ़ाती है 

लाल मिर्च को 

और लाल मिर्च गुस्से 

और भी लाल-भभूका हो जाती है 


भिण्डी के फूलों के बीच 

जादू की तरह निकल आता है 

एक नुकीला फल 

उल्टा लटक आता है बच्चा भंटा 

और जुमा –जुमा कुछ दिन के बाछे को 

निकल आते हैं सींग 


छप्परों पर बढ़ते -फलते 

मुटियाते हैं 

भटुए और कुम्हड़े 

उधार से चला लेते हैं काम 

हमारे गंवई लोग 

एक कौड़े की आग से 

सुलगता है 

कई घरों में चूल्हा 


बदरी के मौसम में 

हर दूसरे घर के ओसारे में 

जलता है अहरा और 

सीझती हैं चने की दाल 

पकती है 

चने की स्वादिष्ट पिट्ठी से भरी 

लिट्टियाँ

भूने जाते हैं भुट्टे 

बची गुनगुनी राख़ में 

भुरभुराती रहती है 

छीमी ,आलू और शकरकंदी 

देर रात तक अगोरते हैं बच्चे 

सो जाते हैं जो बच्चे 

छरिया जाते हैं अपने हिस्से के लिए 

अलस्सुबह नींद से उबरते हुए 


क्या सभी गांवों में

पूजते हैं लोग 

बरगदवा  सेमरा  सिधुआ और 

जाने किन-किन बाबाओं को 


क्या सभी गाँव वैसे ही 

जैसा है मेरा गाँव| 



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