ज़िन्दगी में शामिल से लगते हो
ज़िन्दगी में शामिल से लगते हो
इन झील सी आंँखों में, इतनी गहराई जो, आप बसाए हो,
मृग सी कस्तूरी वाली, हमें भी तो बताओ कहांँ से आए हो।
पल- पल आपकी निगाहों के समंदर में बहते चले जाते हैं,
ठहरा है वक़्त जिसके दीदार से,ऐसा हुस्न कहाँ से लाए हो।
जाने क्या बात है आपमें,कोई हमारी इन नज़रों से तो देखे,
चंचल चांँदनी सी अदा आपकी, क्या चांँद नगर से आए हो।
उतर गए हमारी धड़कनों में, फूलों में बसी खुशबू की तरह,
नजर नहीं हटती इस सूरत से,ऐसी कशिश कहांँ से लाए हो।
गर लिख दें पूरी कायनात भी आपकी तारीफ़ में तो कम है,
मिटा जीवन का अंँधेरा, आप ऐसी रोशनी बनकर आए हो।
क्या ग़ज़ल,क्या नज़्म,क्या शायरी कहें आपकी तारीफ़ में,
आप तो खुद किसी शायर की, ख़ूबसूरत शायरी लगते हो।
काली घटा सी लटें हवा के झोंके से, जब बिखरे चेहरे पर,
बादलों की ओट से झांँकते चाँद से भी ख़ूबसूरत लगते हो।
हकीकत हो आप इस जहांँ की या मृगतृष्णा इन आंँखों की,
ये कैसा एहसास है,नज़रों को आप ही आप नज़र आते हो।
खिंचे चले आ रहे आपकी ओर ही अब ये दिल बस में नहीं,
जाने क्या पोशीदा इस हुस्न में, पल में घायल कर जाते हो।
निशब्द हो चुके क्या कहें, बस आपको देखने का है जुनून,
मन को भिगो दे जो, सावन की पहली बरसात से लगते हो।
यह नज़ाकत आपकी और धीरे से आपका ऐसे मुस्कुराना,
कलियांँ भी देख शरमाए आप हया की ऐसी मूरत लगते हो।
छा गया एक सुरूर सा,ये हुस्न जबसे समाया इन आंँखों में,
बंद पलकों में ठहरे हुए, खूबसूरत ख़्वाब से आप लगते हो।
ये सादगी, ये नूर बताओ कोई कैसे न आपसे मोहब्बत करे,
आप दीदार-ए-नज़र से ही, ज़िन्दगी में शामिल से लगते हो।