बिन फेरे हम तेरे
बिन फेरे हम तेरे
सीता राम
हाथों में जयमाला ले जनक सुता .....
जनक हुए व्याकुल
कोई राजा महाराजा नही
जो शिव धनुष साध सके
सीता मन मन ही मुस्कुरा रही
बसी छवि दशरथ नंदन की
जब देखा उपवन में
राम को लखन संग
पुष्प तोड़ते दृष्टि मिली
दोनों ही देखते रहे प्रेम वश
हृदय का हाल एक सा
कैसा संयोग रहा उस पल
समय ठहर गया
सम्पुट पट मौन रहे
धड़कनों ने साज छेड़े
भूल गये सब
मन चंदन सा महक उठा
तब स्नेह से भरा मन
नयनों में अनुराग रहा
समय का संयोग
मन, बिन बोले
बिन छुए, हुए एक
मन में दोनों के समर्पित नाद रहा
जनक सुता ने,
मां गौरा से मांगा
वर रुप में दशरथ नंदन।