मैं ढूंढ लाऊंगा तुझे
मैं ढूंढ लाऊंगा तुझे
जमीं और फलक से
झिलमिलाते तारों के शहर से
बढ़ती सरिता के नीर,
उनके पनघट के तल से
फूलों के बागों में जो सुबह खिलते हैं,
भौंरा के घर से
प्रेम के प्रतीक सुंदर छवि
बहती यमुना की धारा
मैं ढूंढ लाऊंगा ताज महल से
सरोवर में जो खिलते,
मनभावन आकर्षित कमल से
अम्बर के परियों के डेरों से
पुष्कर के गहराइयों से
उनके मछलियों की दुनिया से
सपनों के बाजारों से
जो यादों की सजती महफ़िल
जो होता हैं दिल में ही कातिल
उनके किनारों से
दिल की प्यास की बरसातों से
दिन और रातों से
<p>चाहतों के लबों से
तड़पते ख्वाबों से
जो हर पल यादों में बजती घंटी
उनकी आवाजों से
दूरियों के दर्द से
तनहाइयों के प्यास से
प्रेमिकाओं के होंठों की लाली से
छलकते शराबों के प्याली से
जन्नत की दुनिया
चमकती वहां की रोशनी से
जो बीत गई है सदियों से
रांझा हीर के कहानी से
शायर के शेरों से
जो झूमती है लताएं बागों में
उनके स्थानों से
कसम से कहता हूं मैं
ढूंढ लाऊंगा तुझे अप्सरा के आवास से
अपने ही होंठों के प्यास से
जो लिखती हैं दिल की बाते मेरी कलम
उनकी स्याही से।।