छुअन
छुअन
एक छुअन के एहसास में सुबह कुछ गुलाबी सी खिली, मैं होश संभाले बैठी थी,
लेकिन कुछ ही देर में अनमनी सी हो गई, मैं जागती रही ख्यालों में,
तुम जगाते रहे मुझे अपने छुअन के एहसास से।
एक अरसा बीत गया, उन कुछ पलों में,
जहाँ तुम होकर भी मेरे साथ हो न सके।
भोर का वह पहर, जब तुम मुझे आलिंगन में लिए हुए थे,
मानो वो समय ऐसा था कि मैं शिव के करीब हो गई।
कब यह जीवन रुपी मृदु पल संसार से ही मुक्त कर गया
मुझे यह ज्ञात न हुआ।
मगर तुम मेरे लिए अध्यात्म का परिचय हो
मेरे सानिध्य का वर्णन हो।
एक एहसास से तुमने मुझे शिवत्व का आभास करा दिया
और तुम कहते हो मैं किसी की ज़रूरत नहीं बनना चाहता।
ये बालपन भी तुम्हारा, तुम्हारी ही तरह विचलित है,
प्रेम जानता तो है, मगर स्वीकारता नहीं।