हैसियत
हैसियत
कुछ ख्वाहिशें अधूरी ही रहे तो बेहतर,
हासिल मंज़िलों की कदर जरा कम हो जाती है।
उसे पाना था दिल की ख्वाहिश मेरी,
ना पा सका तो उसका ख्वाब ही सही।
बकौल उसके इश्क़ तो उसे भी था मुझसे बेपनाह,
पर उसे इल्म था महज इश्क़ से सारी हसरतें नहीं निकलती।
मैं ठहरा मुफ़लिस और बेजार सा आशिक़ ,
सिवा इश्क़ के मेरे पास उसे देने को कुछ मेरे खीसे में नहीं।
वो और ही जमाना था जब सीरतों से इश्क़ होता था ,
आजकल का इश्क़ ना अंधा होता है ना बेपरवाह।
मेरी हैसियत देखकर इश्क़ करोगे तो ना हो पायेगा,
मेरी दीवानगी से इश्क़ करने का माद्दा उसमें नहीं।