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Anita Kushwaha

Romance

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Anita Kushwaha

Romance

दिल छुपके छुपके रोता है

दिल छुपके छुपके रोता है

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जब जब सावन की बूंदे धरती पर बरसती है

मैं शमा की तरह पिघलती हूँ और जलती हूँ।


जब कुहरे की रातों में बादल सा घिर जाता है

तकिये पर सिर रखके दिल छुपके छुपके रोता है।


जब गर्मी की रातों में ठंडी सी हवाएं चलती हैं

कोई मेरे सोये हुए एहसासों को कुचलता है।


शीत की रातों में सीने से लगा तस्वीर तुम्हारी

ठण्डी आहें भरती हूँ तुमको याद करती हूँ।


प्रिय ये दो चार विरह की रातों की बात नहीं है 

बेचैन हो हो कर सिगड़ी की तरह सुलगती हूँ।


जिंदगी बन गयी है अजब सी तमाशाई मेरी

दिल छुपके छुपके रोता है रातों मैं नहीं सोती हूँ


हर मौसम दिल जलाने को फिर से आ जाता है

ये दुनिया मेरी दुश्मन है न जीती हूँ न मरती हूँ।


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