न जाने तुम्हारे हुस्न के दीदार होंगे
न जाने तुम्हारे हुस्न के दीदार होंगे
न जाने कब तुम्हारे हुस्न के दीदार होंगे,
न जाने कब तुमसे मिलने के सिलसिले होंगे।
इंतजारी में ढली जाती यह तन्हा उमर,
न जाने कब लबों पर तुम्हारे इजहार होंगे।।
मोहब्बत भरी दास्तां, क्या हमको भी कभी,
सुनाई पड़े दूसरों से,जो हम बदनाम होंगे।।
तरस अब तो खाओ अपने इस दीवाने पर,
तुम मेरी कहलाओ एसे मेरे अरमान होंगे।।
थक चुका हूं दुनिया की ऐसी रस्मों-रिवाजों से,
जीना हुआ मुश्किल, कब तलक हम जुदा होंगे।।
इससे पहले फिर भी कुछ जिंदा था मगर,
देखकर सौगात मोहब्बत की तुम पर ही कुर्बान होंगे।।
बना लिया अगर तुमने मुझको अपना दीवाना।
कसम खुदा की लबों पर तुम्हारे ही नाम होंगे।।
न जाने कब तुम्हारे हुस्न के दीदार होंगे।
न जाने कब तुमसे मिलने के सिलसिले होंगे।।

