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Ashu_ rockss

Romance

4.5  

Ashu_ rockss

Romance

हृदयाग्नि

हृदयाग्नि

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विरह वेदना को शब्दों में व्यक्त नहीं कर पाता हूं।

जब भी प्रेम की बातें होतीं अबोल सा हो जाता हूं।।

तुम बिन मेरी ओ प्राण प्रिये! अब कुछ भी मुझे न भाता है।

जहां अनंत पथ सा लगे जिसपे मुसाफिर आता जाता है।।

टिकी नहीं निगाहें पल भर कोई और इसे न शायद भाया।

हृदय पुष्प वर्षा कर सिंचित सावन लौट के न वापस आया।।

चांद रात भी रोशन न केवल परछाई भी गम की बातें हैं।

अग्नि परीक्षा मानो मन की जलते दिन और भीगी रातें हैं।।

आ जाओ तुम बन कर गुलशन हृदय को मेरे महका दो।

रूठा मैला सा जीवन यह कांति प्रेम की बिखरा दो।।

सांसें तेज़ और तेज हों उस भीनी खुशबू को ढूंढें।

मतवाली शामें थीं जिससे जो तेरे गालों को चूमें।।

आज उसी हृदयाग्नि में मैं जलता तुझे बुलाता हूं।

आ जा मेरे मीत प्रीत बन तुझको कविता में गाता हूं।।



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