तुम ही कहो हे रूपसी
तुम ही कहो हे रूपसी
देख कर तुमको
उद्वेलित हो जाता है
व्यथित हो उठता है मन
कौन जनम का कौन रिश्ता है
तुम ही कहो
हे रूपसी तुम कौन हो ?
रूप ,रस ,रंग, गंध , मकरंद
उर में उल्लास
अंग अंग में मादकता
और
बाँहों में मधुमास लिए
तुम ही कहो
हे रूपसी तुम कौन हो ?
छोड़ देवलोक को
धरा पे तुम उतर आई हो
वन उपवन को
पुलकित करने वाली
क्या कामदेव की सहचरी हो ?
तुम ही कहो
हे रूपसी तुम कौन हो ?