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आशुतोष त्रिपाठी ' आलोक '

Abstract Inspirational Others

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आशुतोष त्रिपाठी ' आलोक '

Abstract Inspirational Others

" मां मेरी : करुणा स्वरूपिणी"(कविता)

" मां मेरी : करुणा स्वरूपिणी"(कविता)

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ममता का सागर है ठहरा,

मेरी मां की बांहों में।

मुस्कान सदा रखती अधरों पर,

दुःख भरे जीवन की राहों में।

प्रेम पुष्प उपवन के जिसके,

आंचल का श्रृंगार करें।

नतमस्तक हो देव जिसे,

नमन बारंबार करें।

मानव तन में आजीवन,

जिसकी अमिट कहानी है।

गंगा से भी निर्मल पावन, 

मां गीता पुराण की वाणी है।

पिरो पिरो शब्दों में जिसे,

ऋषियों कवियों ने गाया है।

दूर क्षितिज तक है बिखरी,

करुणा की जिसके माया है।।

ऊंचे नीचे भूमंडल से उसने,

निज चरणों को संभाला है।

गेह बना निज पेट को जिसने,

नौ माह पुत्र को पाला है।

क्षुधा प्यास सब भूल गई,

निज पुत्र पे तन मन वार दिया।

निज प्राणों से भी बढ़कर,

मां ने प्यार दुलार किया।

अनजाना था इस जग में,

कर्मन का मुझको ज्ञान न था।

सिखलाया होंठों को बोली,

इससे पहले जो बेजुबान था।।

रचा भाग्य को संस्कार भर,

जग में जीना सिखलाया।

सत्य धर्म की रक्षा खातिर,

वेद मंत्र का सार बताया।।

नाश रहे दुर्बुद्धि सदा,

मां ने अशीष दे त्यागा है।

संघर्षों को स्वीकार किया,

कष्टों से नहीं ये भागा है।।

करुणानिधान हे ज्ञानवान,

हे दयावान हे दुखहारी।

करो कृपा न दुखी हृदय हो,

किसी भी मां की अरज हमारी।।



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