Pandav Kumar

Abstract Romance

4.5  

Pandav Kumar

Abstract Romance

देखते देखते

देखते देखते

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इश्क़ में ना जाने कैसे दगा हो गया

देखते देखते क्या से क्या हो गया


हम मिले थे कम करने फासले

अब कैसे मीलों का फासला हो गया


वादा था हर ग़म बांटेंगे हम

अब मैं ही बोझ सा हो गया


उसके छोटे से ज़ख्मों पर भी रोया था

दिल टूटने पर रोया ही नहीं गया


वीरान में भी तेरे साथ अकेला ना लगा

अब भीड़ वाले शहर में भी तन्हा रह गया।


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