STORYMIRROR

Pandav Kumar

Abstract Romance

4.5  

Pandav Kumar

Abstract Romance

देखते देखते

देखते देखते

1 min
57


इश्क़ में ना जाने कैसे दगा हो गया

देखते देखते क्या से क्या हो गया


हम मिले थे कम करने फासले

अब कैसे मीलों का फासला हो गया


वादा था हर ग़म बांटेंगे हम

अब मैं ही बोझ सा हो गया


उसके छोटे से ज़ख्मों पर भी रोया था

दिल टूटने पर रोया ही नहीं गया


वीरान में भी तेरे साथ अकेला ना लगा

अब भीड़ वाले शहर में भी तन्हा रह गया।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract