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ARCHANNAA MISHRAA

Romance

3  

ARCHANNAA MISHRAA

Romance

रात का चाँद

रात का चाँद

2 mins
180

सुनो 

ये जो चाँद हे ना 

रोज़ मुझसे मिलता है

अंधेरी रातों में , 

जब दिन ढलता हें ना

तब धीरे धीरे ये अपने पट खोलता हें 

जैसे जैसे रात गहराती हैं 

ये एकदम क्षिर सागर सा होता जाता हैं 

सुनो ,में इससे अपनी सारी बातें कहती हूँ , 

इसकी शुभरता में नए प्रतिमान रच लेती हूँ 

सारे अवसादों ग़मों को भूलकर

इसकी चाँदनी में नहा लेती हूँ 

जानते , हो एक बात 

जैसे में घंटो मुँडेर पर बैठकर 

इसका इंतज़ार करतीं हूँ ना 

वैसे ही ये मेरा रास्ता तकता है ।

हम दोनो यूँही घंटो बातें करते हैं

तुमको याद करके आँसू बहाने से 

अच्छा हे ना की में चाँद से मुलाक़ातें करूँ

जानते हों मेरी हर बातों में ज़िक्र 

तुम्हारा होता है

कई बार तो इसे गुमा हो जाता है  

कितनी बार तो ये बादल के पीछे छुप जाता हे 

जितनी दफ़ा मुंडेर से बुलाया हें इसे 

उतना ही इसने सताया हें मुझे 

सुनो ना , तुम जल्दी आ जाओ 

कह के जाते हो और आने में कितनी देर लगाते हो 

अब ये रात ना बिलकुल अच्छी नहीं लगती 

ये जो मुआं चाँद हे ना , जाने कहाँ गुम हो गया हे ,

कई दिनो से इसे देखा भी नहीं , 

सुनो जल्दी आ ज़ाओ ना , जल्दी आ जाओ ॥


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