चाह
चाह
चाह
बंद किताबें बड़ी अच्छी लगती हैं
जैसे जैसे खुलती हे ना
एक दर्द
एक बेचैनी
एक जिज्ञासा उमड़ने लगती है
बरसों से बंद हैं मेरी भी कल्पनाएँ
मेरे विचार ,
मेरी अभिव्यक्ति
ग़र कहो तो उड़ेल दूँ
मैं भी अपने रंग इस कैनवस पर
इस आपाधापी में छूट गया बहुत कुछ
शुक्र है मेरी किताबें मेरे पास हैं।
