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Sanchita Yadav

Inspirational

5.0  

Sanchita Yadav

Inspirational

मैं की परिभाषा

मैं की परिभाषा

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यूं तो बचपन में सोचा कई बार मैंने

क्या ग्रंथों पुराणों में है भगवान मेरे?


मैं बोला दोस्त अश्वाख से, 

भाई भला ये माजरा क्या है?

आज तू मेरी गीता पढ़ ले, 

मैं देखूं तेरी कुरान में क्या है!


वो बचपन मजहबों के बड़प्पन

से अछूत था

अश्वाख गीता में, मैं कुरान में

मशगूल था।


दोनों को सब कुछ सुना सुना सा लगा

भगवान - ख़ुदा, ना जुदा जुदा सा लगा


ये भेद जान, वो फट से हँस दिए

उस क्षण के आनंद को होठों में सिए।


बस वही जो नन्हा सा पल हसीं का था

बस वही जो लम्हा खुशी का था,

आज के सवाल का वही जवाब है,

मेरे लिए दोस्तों, आनंद ही भगवान है।


नादान सा बचपन कितना सरल था,

आनंदित रहना भी कितना सहज था।


उम्र बढ़ती गई, और समझ

उलझती गई,

भगवान की परिभाषा, हर रोज़

बदलती गई।


फिर खोजा तुझे विचारों में, मज़ारों में,

दरगाहों में

क्यों सोचा नहीं मैंने पहले, आना था

श्मशानों में।


>

जब जब जीते जीते, मैं तुझ को

भूल जाता हूं,

तब तब थोड़ा मरने के लिए,

श्मशान चला आता हूं।


शरीर जल जाता है, पर दृष्टा रह जाता है,

आखिर कौन है ये जो मर कर भी, 

थोड़ा बाकी सा रह जाता है।


बस यही जो थोड़ा सा है

बस यही जो बाकी सा है

यही वो पहेली, वो शक्तिमान है

मेरे लिए तो दोस्तों, यही भगवान है।


सत्य लगता ये स्वप्न जीवन, गंगा में

बहा आते हो।

और राम नाम ही सत्य है, ये

अंत में बताते हो!


श्मशान में मशाल से, शहीद

शरीर होता है,

मैं था पहले, मैं हूं अब भी,

महसूस मुझे होता है।


यहां खुद को जलते देखता हूं, 

वहां खुद को खुद में खोजता हूं

एक तरफ मेरी लाश है, 

एक तरफ़ा ये तलाश है।


तन ये मिट्टी का, मिट्टी में हो लिया

पा लिया है खुद को, शरीर खो दिया।


मौत को मात देता, ये कैसा अंजाम था

कहने से हिचकता हूं, शायद मैं ही

भगवान था।

शायद मैं ही भगवान था।



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