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SHUBHI AGARWAL

Inspirational

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SHUBHI AGARWAL

Inspirational

शहादत को नमन

शहादत को नमन

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मैं कितने मुकद्दर वाली हूं जो ये गर्व मुझे नसीब हुआ,

तेरी शहादत के नूर से इस हीर का सिंदूर अमर हुआ।।

माई की माटी से जिस लहू की सोंधी महक चली,

उसी जिस्म को तिरंगे के कफ़न में कोख मिली।।


तेरे एहसास का हक छीन सके ऐसा कोई जरिया नहीं,

तेरी कुर्बानी की ताबीर को जल्द मंज़िल मिलेगी सही।।

माँ बाबा तेरे, फक्र से अपने अश्कों को जलाए हैं,

अपने लाल की तस्वीर में अपने गुरूर को समाय हैं।।


वतन की हर लहर में तेरा अफसून उजला है,

दुश्मनों को भी इस खौफ ने अपने चंगुल में जकड़ा है।।

ना लौटेगा कभी वो जो हक से बहना को सताता था,

राह ताकती आँखों में एक सूनेपन ने हक जमाया था।।


अर्धांगिनी बनाकर मुझे जब अपने साथ लाए थे,

मुझसे हर सुख दुख बांटने के कस्मे वादे खाए थे।।

ना कमी किसी सुख की थी ना किसी जुदाई का ग़म था,

तेरे शव को लिपटा देख अर्द्ध का अर्थ पहली मर्तबा

समझा था।।


मानो तूने कहा की भारत माँ ने मुझे पुकारा है,

पर मेरी माँ के दूध का कर्ज अभी ना मैंने उतारा है।।

तू धर्म मेरी, तू कर्म मेरी, तू ही मेरा साया है,

माँ ने मेरी बेटा खोकर बेटी को पाया है।।


मैं जान चुकी तेरी यादों में ही मेरा सफर मुकम्मल है,

माई का एक और लाल मेरी कोख में उज्ज्वल है।।

ना हिचक कोई, ना डर कोई इसको वतन पर वारने में,

शहीद की माई कहलाने सा सुकून नहीं किसी फलक में।।


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