हत्यारे
हत्यारे
मैं अपनी माँ की दुलारी बेटी हूँ,
बस अभी उसकी कोख में,
आराम से लेटी हूँ I
यूँही दिन भर, हाथ - पाँव चलाती
कभी कभी, पैर पटक भी देती हूँ
माँ चुप चाप सह लेती है,
प्यार से झप्पी पेट पर देती है I
माँ को सब पता है,
मैं शरारती उसकी बेटी हूँ I
वो लगता है आज थक
कर जल्दी ही सो गई I
बस आज बहुत हुआ,
मैं भी अब सोती हूँ I
अगली सुबह मैं उठी
लेती जम्हाई सी,
कानों में पड़ी एक खबर
मार डाली बेटियाँ,
वो किसने बर्बरता बरपाई थी ?
मैं व्याकुल हो उठी
माँ .. सुनो माँ…
मुझे डर लग रहा है
तुम सुन रही हो ना माँ ?
अपना हाथ थोड़ा सहलाओ तो
पेट पर अपने,
मुझे थोड़ा प्यार से थप - थपाओ तो
नहीं तो मैं एक पाँव से मारूंगी
तुझे पेट में,
सुनो माँ मैं घबरा रही हूँ ,
ये खबर सुन अंदर ही अंदर
मरी जा रही हूँ
एक बात पूछूं ?
क्या तू सच बताएगी माँ ?
कहीं मैं भी यूँही जन्म से
पहले तो ना कोख में मारी जाउंगी ?
जन्म हो भी गया तो,
कहीं इन हवस के शिकारियों से
मासूम सी तो ना कुचली जाउंगी ?
या कोई सनकी,
तेज़ाब से तो ना जला देगा मुझे ?
कहीं ऐसा तो नहीं ?
कोई दहेज़ का लोभी
स्वाह ना कर दे मुझे ?
या पंखे पर तो ना कहीं
मेरे दुपट्टे से लटकाई जाउंगी ?
या फिर जान बचने को,
उन हैवानों से रेल की पटरी पर,
वारी जाउंगी ?
माँ.. तू बता ना माँ ..
तू सब चुप चाप सुनती ही जा रही,
तेरी ये बेटियाँ,
इन हत्यारों की,
भेंट चढ़ती ही जा रही ,
क्या इन इंसानियत के,
हत्यारों को कोई सजा या
इलाज नहीं ?
सुनो !
अब एक माँ है बोलती
मन में लिए राज़,
आज वो सब है खोलती I
सुन मेरी प्यारी बेटी
मासूम सी तेरी तरह
नहीं ये दुनिया होती
ये कानून तो यूँही
अपना गति से काम करेगा
लेकिन !
एक माँ का वादा है तुझ से
तू जन्म लेगी
ज़रूर लेगी I
मेरी बेटी ना तू यूँ मज़लूम होगी,
फौलाद सी मज़बूत,
तू जलती एक मशाल होगी I
ज्ञान से भरी
शिक्षित एक मिसाल होगी
खुद के पैरो पे खड़ी
ये नया हिन्दुस्तान होगी
ना होंगी दीवारों की बंदिशें
हाँ लेकिन, संस्कारों की
तू छाया तले,
एक बेहतर इंसान होगी
तुझे ना छू पाएंगे ये दरिंदे
तू कानून से वाक़िफ़,
फौलादी चट्टान होगी
अब तू ले शपथ,
बन निडर,
खुद की ताकत को
अगर पहचान लेगी I
थरथरएंगे ये हत्यारे,
तू अगर खुद को पहचान लेगी I
रहम की भीख मांगेंगे ये तुमसे,
दुर्गा का रूप,
जो तू अगर ठान लेगी I
