अहसास
अहसास
जैसे साँसें लेते हो जीवन के लिए
क्या वैसे ही जरूरी हूँ में जीवन के लिए।
तुझ संग रहने से थी मेरी अहमियत,
क्या मेरे आने से अब है मेरी ज़रूरत।
क्या वैसे ही टूट के चाहतें हो मुझको
क्या अब भी हलचल होती हे तुझमें।
क्या अब भी नाम लेते हों मेरा तन्हाई में
या डरते हो रुसवाई से।
मैं तो सिर्फ एक वस्तु की तरह आंकी गयी,
दे के सर्वस्व अपना तेरे दिल से निकाली गयी।
मेरा वजूद था कुछ वहाँ
या कुछ दिन का रैन बसेरा था।
क्या में बन पाई वजह तेरे जीने की,
क्या मेरे नाम का तूने सजदा किया।
दुनिया भर की तोहमत से दामन मेरा बेदाग़ किया,
जो भी थे संग मेरे अपने उनको मुझसे दूर किया।
नहीं बनी में किसी की संगिनी,
सिर्फ़ कुछ दिन का था दाना पानी।
नहीं लौटना अब मुझको भी वहाँ,
जहाँ दे ना सके कोई साथ मेरा।
जहाँ बार बार अपने वजूद को साबित में करूँ,
नहीं हैं आश्चर्य की कोई बात यहाँ।
चल साँझ भई अपने ही ठौर
नहीं यहाँ कोई तेरी और ॥

