सावन
सावन
बादलों ने ये कैसा बसेरा डाला
हुआ है मेरा मन तो मतवाला
कहीं कारें कारे हे काजर से
तो कहीं श्वेत हे आभा इनकी
कहीं तो कौंध रही बिजरी सी
कहीं नैनन में समाया हैं जल इनके
कहीं तो खेल रहे बालक से
उमड़ घुमड़ के कितना शोर मचाया हैं।
जब जब आते कारे बदरा
मेरा मन मोह लेते बदरा
धरती की है प्यास बुझाते
शीतलता कर जाते बदरा ।
देख बादलों को मन मेरा
खूब तरंगित होता हैं।
बन मयूर में भी नाचूँ
जब बादलों का डेरा होता ॥
बहती है ये जो बयार संग ले के अपने फुहार ।
तृप्त कर जाती हे मुझको
दे जाती हे एक नया खुमार ॥
ठंडी पुरवईया हे बहती
जाने कितने को शीतल हे करती ।
बन कोयल में भी कूँ कूँ
बनूँ पपीहा तान एक छेड़ूँ
भर देती हे रंग हज़ार जब चले
मंद मंद बहती हवाएँ संग लिए नन्ही फुहार ॥
