डर
डर
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मुझे डर लगता हे
इस अंधदौड़ की प्रतिस्पर्धा से
कहीं छूट ना जाए सपने
कहीं रूठ ना जाएँ अपने
जब कहीं आहट हो सहम जाती हूं मैं
खुद से ही कई दफ़ा डर जाती हूँ मैं
कोई रोके तो कैसे इस खेल को
यहाँ हार जीत ही सब कुछ है
जज़्बातों का कोई मोल नहीं
जो सुनसान रास्तों पर चल पड़ी हूँ मैं
यहाँ दूर तलक अंधेरा हैं
कहीं कोई चिराग़ मयस्सर नहीं
बन खुद की ही रोशनी
आगे बढ़ना हैं
आगे बढ़ना हैं।
