विजयदशमी
विजयदशमी
कैलेंडर की ओर ध्यान से देख,
संभावित अवकाशों को देख,
वो प्रसन्न हो रहा था, बार बार
कैलेंडर को देख।
उत्सुकता उसकी बढ़ा गई,
कैलेंडर में उस चित्र को देख,
माँ -माँ चिल्लाता ढूंढ रहा,
हर एक कमरे को देख,
माँ समझ गई कोई प्रश्न है,
व्याकुल उसकी आँखें देख,
माँ बोली रुक साँस तो ले ले,
ज़रा अपने दशा तो देख,
उत्तर सभी प्रश्नों का होगा,
अधीर ना बन श्री राम को देख,
यही प्रश्न है माँ मेरा भी,
चित्र दशानन और श्री राम का देख।
कौन थे वो, और क्यों ये लड़े,
हैरान हूं में यह सब कुछ देख,
लड़ने वालो की पूजा होती,
हैरान हूं में यह सब कुछ देख,
मेरी व्याकुलता बढ़ती रहती,
हर वर्ष जलते रावण को देख।
राम रावण के युद्ध का भाव
समझ, तू चित्र ना देख,
दो व्यक्तियों का द्वंद नहीं,
संकल्प शक्ति की जीत को देख,
देख इसमें गर दिख पाए,
पुरुषार्थ पुरुषोत्तम का देख।
अतुल्य शक्ति, स्वर्णनगरी स्वामी,
शौर्यवान रावण को देख,
परम् भक्त, वेदों के ज्ञाता,
कीर्तिवान रावण को देख,
और देख अहंकार के आते,
धूमिल उसकी छवि को देख।
संघर्षों में घिरे सदा , फिर भी
हर्षित श्री राम को देख,
पौरुष से भरे, विनर्म खड़े,
कर जोड़ खड़े श्री राम को देख,
त्यागमूर्ति, शामाशील, परमसुख
दायक श्री राम को देख।
देख यहां पे ध्यान लगाकर,
सत्य की तू जीत को देख,
साधारण की इच्छाशक्ति की
सबल पे तू जीत को देख,
और अगर कुछ देख सके तो,
मेरे प्यारे बच्चे देख।
अपने अंदर बसते दोनों, श्री राम
और दशानन को देख
कौन होगा प्रबल, गर चुनना हो,
तो पहले इस चित्र को देख।