ग़ज़ल
ग़ज़ल
अगर यहाँ हो इजाजत सवाल करने की
पड़े हमें न ज़रूरत क़िताल करने की
समझ सका न मुझे वो न मैं उसे समझा
न काम कोशिशें आई विसाल करने की
नहीं झुका न सही पेड़ आज टूटेगा
जरा हवा को ज़रूरत मजाल करने की
नज़र रखी है खजाने पे शाह ने मेरे
घड़ी ये हुक्म का अब इख्तिलाल करने की
न सच कहें न सुने शोर में दबा देंगे
यहां पे होड़ लगी है बवाल करने की