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Dr Alka Mehta

Inspirational

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Dr Alka Mehta

Inspirational

बूझो तो जानूं

बूझो तो जानूं

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हर वक़्त बहती हूँ कल-कल,

रूकती नहीं बढ़ती रहती हूँ पल-पल,

निकली कभी ऊंचे पहाड़ों से

कहीं कभी उजाडों से,

सरिता हूँ बहती हूँ सर-सर,

झरनों से बहती हूँ झर-झर ,

पहुँच गयी मैं तो घर-घर,

मुझे तो कभी कहते हैं नहर ,

 

प्रवाहिनी हूँ जब बहती हूँ सतत ,

तटनी हूँ जब बीच दो तट,

तेज गति से बहती हूँ तो

कहलाती हूँ क्षिप्रा ,

हर पेड़, पौधों और पक्षिओं की

रही प्यास बुझा,

खेत-खलियानों को मुझ से

किसान है सींच रहा,

अविरल बहती हूँ जैसे मधुर

संगीत की धुन,

नहर ,सरिता, प्राविहिनी,

तटनी, क्षिप्रा हैं

नाम कई जो चाहे लो चुन,


अब जानो कैसे हुआ मेरा उद्गम,

कैसे आयी हूँ धरती पर,

सवर्प्रथम बसी थी बर्फीले

पर्वतों की कोख में,

रहती थी निर्जीव से नहीं थी कोई

पहचान थी अनजान,

फिर बढ़ी मैं पेड़,पौधों और

पत्थरों के बीच से आने को मैदान,

मेरे शीतल जल से हर प्राणी

बुझा रहा है अपनी प्यास,

चाहे हो पेड़, पौधे, पक्षी और इंसान,

उतर कर धरती पर जब की

जग सेवा की है ,पाया है सम्मान,

गंगा,जमुना और सरस्वती का

प्रयाग में संगम,

मैं तो पूजी जाती हूँ कभी

अमावस कभी पूनम ,

उतर कर मैदानों में लेती रही हूँ विस्तार,

मेरे द्वारा होता है काष्ठ का व्यापार,

मैंने देखी हैं अपने तट पर बस्ते बस्तियां ,


होती मुझ मे उथल-पुथल तो

ढहते देखी बस्तियां,

मेरे तटों पर बसे हैं कई शहर,

गाँव बसे कई मेरे इधर-उधर,

जाने को मेरे आर-पार कई पुल हुए तैयार ,

गुजरे उस पर राजा,महाराजा,

सैनिक कई हज़ार,

अब बूझो तो जानूं मैं हूँ कौन,

अरे तुम क्यों चुप हुए हुए क्यों मौन ,

मुझ में है गजब का साहस

गजब की धीरज शक्ति ,

दुनिया की कोई ताकत मुझे

आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती,

मैं हूँ नदी , रूकती नहीं थकती

नहीं मैं हूँ नदी,

मुझसे कुछ तुम शिक्षा पा लो

और ये संकल्प उठा लो,

रुकना नहीं थकना नहीं जब

तक अपनों लक्ष्य न पा लो...



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