महसूस करो कभी वो पल!
महसूस करो कभी वो पल!
जिंदगी के पीछे भागना हो गया हो तुम्हारा
तो दो पल आँगन में बैठ कर खो जाएं !!
यूँ तो रोज़ तुम ना सूरज देखते हो ना चाँद,
ना दिन देखते हो ना चांदनी रात!
इस रोज़ मर्रा की जिंदगी से थक गए हो,
तो तनिक तशरीफ रखो मेरे साथ?
उम्मीद है बैठ कर कभी अपने मासूम गालों पे
हवा का झोंका महसूस किया होगा तुमने।
पर क्यों ना इस बार उसके साथ आए
भीनी सी खुशबू का जाम पिया जाए?
पता है हमें उस सुबह सुबह चहचहाती
चिड़िया का सुर तुम्हें अच्छा नहीं लगता होगा।
क्योंकि रात को खुद से हार कर देर से
सोने की आदत जो डाल ली है तुमने!
पर कभी करीब से एक नजर देख लो उसे,
क्या पता उसके नन्हे कदम और सतरंगी पर,
तुम्हारी जिंदगी भी रंगीन कर जाएं!
अच्छा सच्ची बताओ पिछली बार बारिश में
भीग कर अच्छा नहीं लगा था ना तुम्हें?
लगता भी कैसे जनाब! कभी उस बरसाती रात
के अंधेरे में पकौडों और चाय का लुत्फ़
उठाया ही नहीं तुमने
बयान करो कभी अपनी भी दास्तान
हमें भी अच्छा लगे !!!
जन सैलाब भले ही ना हो तुम्हारे महफ़िल में ,
पर बादल के सैलाब तो होंगे।
याद करो कभी पत्तों पे गिरी उस ओस की
बूंदों को हथेलियों मे समेटा है तुमने ?
कहाँ जनाब तुम्हारा इंतजार करके तो
वो पत्ता भी पतझड़ मे झड़ जाए!!
तुम्हें इतना वक़्त कहाँ की तुम उसकी
तसव्वुर में एक लम्हा गुजारो
ये नहीं तो कम से कम फूल से रस पीती
उस तितली को तो देखा होगा?
नर्म नई कली पर पड़ती उस धूप को
तो मुट्ठी में छिपाया होगा ?
खैर तुम्हें अपना समय ज़ाया करने की
कहाँ आदत है
मैं रोज़ धूप की रौशनी लिए फूलों की
चूड़ियाँ पहने, आँखों में तारे लिए
हर मौसम की अलग साड़ी पहने
कलियों के महक का सेज बिछाई हूं
सिर्फ़ तुम्हारे लिए
तुम्हारे इंतजार में मैं ओस से चांदनी
तक का तसव्वुर करती हूं
पता है हमें समय की कमी है तुम्हारे पास
ना मेहराम नहीं हैं तुम्हारे
एक बार प्यार से नजर उठाकर देख
तो सकते ही हो?