“हैं एक अनजाना सा ख़्वाब”
“हैं एक अनजाना सा ख़्वाब”
हैं एक अनजाना सा ख़्वाब,
ना जाने आया कहाँ से ये आज।
देखी है सिर्फ़ एक तसवीर आज,
बैचेनी सी हो रही है सुबह और शाम।
हो चुकी है रात ये सोचते सोचते, होगा क्या
हाल जब सच होगा तसवीर वाला ख़्वाब।
है फ़ासला सिर्फ़ एक रात का, ना जाने
क्यू लग रहा है मीलों का रास्ता।
रखते ही क़दम उसकी दहलीज़ पे,
ज़ोरों से धड़क उठा सोया हुआ दिल ये मेरा।
बैठा हूँ आके उसके आंगन में,
निगाहे कर रही है बस उसी की तलाश ।
सुनकर वो मीठी पायल की आवाज़ से,
देखा मेने चारों ओर तिरछी निगाहो से।
पलकें झुकाते हुए नज़रें शरमाते हुए,
पुछा जब उसने मुझे “ आप चाय लेंगे ”।
संभाला है मेने ख़ुद को बड़ी मुश्किल से,
कहीं हो ना जाए दिल फिर से बदमाश रे।
सोचा नहीं था की ऐसा होगा ख़्वाब हमारा,
जिसे देखकर भी शरमा जाए आईना हमारा।
आ ही गया वो दिन जिसकी मुझे तलाश थी।
सच हुआ ख़्वाब मेरा जो था बरसों से अधूरा।
फिर एक आवाज़ आई उठ बेटा ऑफ़िस जाना है,
तभी याद आया मुझे ये तो बस सुभह का हसीन सपना है।
हैं एक अनजाना सा ख़्वाब,
ना जाने आया कहाँ से ये आज।