है कुछ मंज़िले जों अभी पानी बाक़ी है।
है कुछ मंज़िले जों अभी पानी बाक़ी है।
है कुछ मंज़िलें जों अभी पानी बाक़ी है।
सुबह उठा हूँ जिसके लिये, लड़ा पूरा दिन उसके लिये।
ढल गया दिन ओर हो गई शाम, हाथ आये बहुत सारे ईनाम।
आया नहीं वो हाथ मेरे, जिसकी थी तलाश मुझे।
है कुछ मंज़िलें जो अभी पानी बाक़ी हैं।
सोया नहीं उस रात में, बैठा हु उसी सोच के इंतज़ार में।
कैसे गुज़रेंगे रात यें हालत मेरे, याद आई फिर एक बात मुझे।
आशा है फिर वही सुबह होगी, जिसकी मुझे तलाश है।
है कुछ मंज़िलें जो अभी पानी बाक़ी है।