बिन गुफ्तगू सो जाया करते हो
बिन गुफ्तगू सो जाया करते हो
बिन गुफ्तगू के सो जाया करते हो
इन हसीन रात में दूर हो जाया करते हो
रात के अंधेरे में खामोशियाँ याद आएगी
आंखे मिचोगे तो मेरी झुकी पलकें तेरी बाहों में नजर आएगी
चादरों की सिलवटें उसमे तेरा मेरा साथ
सर्द की ठिठुरती रात खुद ब खुद मौसम बन जाएगी
बहुत हुआ खुले आंखों से खवाब देखना
भला उनकी निदिया से तकरार कौन करे
मोहब्बत के अल्फ़ाज़ लहजों में कैसे बयां करें
बड़ी बे- दर्द सी है कहानी मोहब्बत की
वरना भला आशिक़ी में नीद कौन हराम करे
अब तो इश्क के लिफ़ाफ़े में कैद है नींद और चैन
एक रोज याद आएगी खामोशी इश्क की!!