तकनीक के बिना संसार
तकनीक के बिना संसार
अगर ना होती ये चकाचौंध, ना होता कोई उपकरण,
शायद मनुष्य होता सरल, ना रहता उलझन का घर।
ना फोन बजता, ना संदेश आते,
सुकून से दिन-रात गुजर जाते।
ना मशीनें, ना वाहन की रफ़्तार,
हर कदम चलता पैरों का आधार।
धरती की गोद में सोते थे लोग,
चाँद-तारों के संग बुनते सपनों का लोग।
जंगल के झरनों में गीत बजते,
पंछी अपने सुरों में सबको लुभाते।
ना बिजली, ना इंटरनेट की बाढ़,
सूरज के संग होता दिन का आरंभ और रात।
बिना स्क्रीन के सपनों का संसार,
चेहरों पर मुस्कान और दिल में प्यार।
ना दौड़ थी आगे बढ़ने की होड़,
हर दिल में बसता था सादगी का जोड़।
पर आज की इस दुनिया से पीछे लौटें कैसे?
तकनीक के बिना अब जिएं वैसे?
शायद, संतुलन हो सकता है राह,
जहाँ तकनीक और प्रकृति मिलें साथ।
ऐसे संसार का सपना है सुंदर,
जहाँ मनुष्य फिर बने धरती का मित्र।
जहाँ न हो तकनीक का गुमान,
और न खोए इंसानियत का मान।
जहाँ मशीनें करें बस मदद हमारी,
पर न छीनें संवेदनाओं की सवारी।
प्यासी नदियों को फिर से भरें,
सूखे जंगलों में हरियाली लहरें।
चिड़ियों की चहचहाहट कानों में गूंजे,
धरती का हर कोना फिर से संजोगे।
हम सीखें संग चलना प्रकृति के,
संभालें हर उपहार इसे दिए।
तकनीक हो सहायक, न बने शत्रु,
सादगी के गीत गाएं, दूर करें दुख।
अगर फिर से समझें रिश्तों की डोर,
जहाँ भावनाएँ बनें हर दिल का जोर।
तकनीक और इंसान का हो ऐसा संगम,
जहाँ दोनों करें विकास का उद्गम।
आओ, बनाएं ऐसा संसार,
जहाँ तकनीक हो पर संस्कार बरकरार।
धरती की ममता और इंसान का प्यार,
साथ मिलकर करें नए युग का उद्भार।
