लफ़्ज़ों का सागर कागज़
लफ़्ज़ों का सागर कागज़
सुबह की ठंडी हवा में,
खिड़की से छनती किरणों की छाया में।
एक प्याली चाय संग मीठे गीत,
मन में बस शांति, कोई नहीं रीत।
लफ़्ज़ों का सागर कागज़ पे उतरे,
कहानियों में भावों के मोती बिखरें।
कभी प्रेम, कभी दर्द की बूंदें,
शब्दों में जिंदा हो जाएं सौगंध।
दोपहर की गोद में सपने संजोऊं,
कुछ लिखूं, कुछ खुद को खोऊं।
कभी पहाड़ों की छांव में बैठूं,
कभी झील की लहरों में बह जाऊं।
शाम हो, अपनों का संग मिले,
बातों में फिर से रंग खिले।
हँसी-मजाक, कुछ मीठी बातें,
यादों की गहराई में भीगें सौगातें।
रात को तन्हाई भी साथी बने,
किताबों के पन्ने कहानियाँ बुने।
डायरी में दिनभर की बातें लिखूं,
हर छोटी खुशी का शुक्र अदा करूं।
फिर आँखें बंद, एक मीठी नींद,
सपनों की दुनिया में, खुशियों की भीड़।
बस ऐसा हो मेरा हर एक दिन,
शब्दों से सजता मेरा मन का बाग़िन!
