" सत्यम शिवम् सुन्दरम "
" सत्यम शिवम् सुन्दरम "
हम कहाँ उन महान विभूतियों
के परिधियों में समाहित हो सकते हैं ?
जिनकी प्रखर प्रतिभाओं से चहुदिश
आनंद का श्रृजन होता है !
नविन संदेशों से परिवर्तनों
की बयार बहने लगती है !
उनकी कविताओं में कुछ वजन होता है !
शब्दों और छंदों के अलंकृत परिधानों
में लिपटी रंग रूप गौर वर्ण का मिश्रण
लोगों को आकर्षित करता है !!
उनकी प्रसिद्धियाँ ही उन्हें क्षितिज के छोर
तक पहुँचाने को उद्दत रहती है !
सब के ह्रदय के मरुस्थल को हरियाली से
आप्लावित करती रहती हैं !!
श्रृंगार हो या व्यंग्य की फुहार हो
लोगों में उत्कंठा रहती है !
हाथों हाथ लोग उसे लेकर
मन मस्तिष्क के ऊपरी
पायदानों पर रख इतराते हैं !!
पर हम तो इस रण के
नए खिलाड़ी शस्त्रों का चयन
करना भला हमें नहीं आता !
हम टूटे फूटे अस्त्रों से इन
रणक्षेत्रों में उतर गए !
जो मन आया धनुर्धर बनने का
तो प्रतंचा चढ़ाना भूल गए !!
लेखनी में भाव होना चाहिए
शब्द का विन्यास होना
सन्देश हो और लेखनी में
" सत्यम शिवम् सुन्दरम "
का मन्त्र होना चाहिए !!
