change the mindset
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दो दिन पहले किसी ने बड़े ही आराम से
फरमाते हुए नुमाइश कि,
लड़कियां चरित्रहींन होती हैं
वहाँ बैठे लोगों में थोड़ी हलचल थोड़ी गरमाहट हुई
कहना आसान था जनाब को,
सो कह दिया
हमने पलट कर पूछा,
भला पता भी हैं लड़कियों को चरित्रहीन बनाने वाला कौन होता हैं?
यही पुरुष प्रधान होता हैं,
जो बड़े आराम से मुँह तो खोल देता हैं
लेकिन आधा हक़दार वो खुद भी होता हैं
सोच बदलने की जरूरत हैं
अब समाज में लड़कियों की इज्जत अकेले नहीं जाती
उस इज्जत को लूटने वाला भी इस दुनिया मे मशहूर होता हैं।
थोड़ा तीखापन हैं मगर सोच बदलने की जरूरत है
लड़कियों को दोष देना आसान है,
पर उनकी जड़ों में दर्द किसने बोया, ये कौन मानता है?
जो उंगलियां उठाते हैं उनके चरित्र पर,
वो भूल जाते हैं कि हर दाग का हिस्सा वो भी है।
इज्ज़त की बातें करना बचपन से सिखाया जाता है,
पर उसे लूटने वाला भी हर कोना में छुपाया जाता है।
चरित्र का बोझ लड़कियों पर अकेले क्यों डाला जाता हैं
क्या लड़कों के कर्मों का हिसाब नहीं लगाया जाता हैं?
यह समाज, जो खुद को सभ्य कहता है,
हर गुनाह को बेझिझक सहता है।
लड़कियों पर हंसने वालों, पहले अपना चेहरा देखो,
उस आईने में झांक कर, अपनी हकीकत से रु-ब-रु हो।
क्यूंकि उंगलियां उठाना तो अब महिलाओं को भी आता हैं
अब वक्त बदल रहा हैं
सोच नया आकार लें रहा,
महिलाओं का हल्ला बोल अब तुमसे सहन नहीं हों पा रहा हैं
बहुत राज कर लिया महिलाओं के शोषण पर
अब बारी खुद की हैं तो डर का भड़ास निकाला जा रहा हैं!
लड़ाई लम्बी हैं मगर ताकत तगड़ी हैं
समझाया बहुतेरे बार की थम जाओ उंगलियां उठाने से
मगर एक आदत ही तो हैं जो कहा सुधरे सुधरती हैं
जुबान हैं हर बार,
बार - बार फिसलती हैं
कौन हों तुम किसी के चरित्र को जज करने वाले
हम दोनों के कर्मों का हिसाब करने वाला जज ऊपर बैठा हैं!
