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Sonam Kewat

Romance

3  

Sonam Kewat

Romance

बनारसी साड़ी

बनारसी साड़ी

2 mins
205


इश्क एक ही दफा हुआ था पर,

किसी बनारसी से हुआ था।

बातों बातों में वो मुझसे पूछने लगा,

बनारस के खास खास पान और 

बनारस की मिठाईयां सब है। 

तुम कहो कि तुम्हें क्या चाहिए? 

तो क्या था पान तो हम खाते नहीं, 

और मिठाइयां आखिर कब तक खाते!

हमने भी कह दिया कि ऐसी बात है तो

बनारस की साड़ी ही पहना दो !

हम तो ठहरे मुंबई वाले चाहते तो,

खुद ही खरीद लेते हैं पर जाने क्यों,

उसके हाथों से मिलने का इंतजार करते रहे। 

कई दफा उसके साथ बनारस की, 

गलियों में साथ आना जाना हुआ पर 

उसके हाथों साड़ी का लाना है ना हुआ। 

कहने लगा अपनी पसंद से ले लो और 

मैं रटती रही कि नहीं तुम्हारी पसंद दे दो। 

बस टल गई बात कि कभी और ले लेंगे।

वैसे वो भी मुंबई में ही रहता था लेकिन, 

बनारस में आना जाना लगा रहता था।

उसकी बातों से ना जाने कितनी दफा,

बनारस की कुछ अलग ही हवा लगीं। 

अजीब बात है कि वह बनारसी साड़ी,

कभी भी उसके हाथों से मेरे हाथ ना लगीं।

बस वो रिश्ता टूट गया जाने अनजाने,

अनकही और अनसुनी बातों के साथ,

अधूरा रहा साथ रहने का अटपटा ख्वाब।

कुछ दिनों पहले थोड़ा हिचकिचाते हुए,

मैंने आसमानी सा बनारसी साड़ी मंगवाया।

आईने के सामने पहन कर सोचने लगी, 

कि क्या ये सच में वही साड़ी है! 

जिसे पहनने के लिए मैं इतने सालों से, 

इंतजार कर रही थी और समझ आया कि, 

लगाव एक मामूली साड़ी से नहीं बल्कि 

उस बनारस वाले के हाथ से एक तोहफा,

बनारसी साड़ी को पाने से था।

पर अंत में क्या हुआ,

आज देखो उस बनारसी से दिल्लगी छूट गई,

और बनारसी साड़ी से लगाव हो गया।



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